PERSON WHO SOLD TAJMAHAL THRICE - IN HINDI

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अपने शायद BUNTY AUR BABLI फिल्म देखी होगी जिसमें एक सीन में दोनों मिलकर एक विदेशी के साथ ताज महल का सौदा करते हैं। कैसा लगेगा अगर कोई आपको सच में ताजमहल या लाल किला खरीदने की ऑफर दे, आपको शायद यह एक मजाक की तरह लगेगा, और इस पर विश्वास करना भी मुश्किल लग सकता है, लेकिन अभी कुछ दशक पहले, एक शख्स ऐसा था, जिसने अपने चतुर और धूर्त तरीकों से, तीन बार ताजमहल, दो बार लाल किला, एक बार राष्ट्रपति भवन और एक बार पार्लियामेंट हाउस को उसके नेताओं सहित बेच दिया। उसने इतिहास की किताबों में अपना नाम कुछ इस प्रकार दर्ज करा लिया है, कि उसे देश के सबसे बड़े जालसाज़ के रूप में याद किया जाता है और किसी भी धोखेबाज के साथ तुलना करने के लिए आज भी उसका नाम इस्तेमाल किया जाता है। उसका नाम था नटवरलाल

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नटवरलाल का असली नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था। उनका जन्म वर्ष 1912 में बिहार के सीवान जिले के बंगरा गाँव में हुआ था। उनके पिता एक रेलवे स्टेशन मास्टर थे। वह अपने बचपन के दिनों में पढ़ाई में कम रुचि रखते थे और फुटबॉल, शतरंज आदि खेलों में अधिक रुचि रखते थे। उन्होंने शुरूआती पढाई गाँव से ही की और 9वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई के लिए पटना भेजा गया, जहाँ से उनकी जालसाज़ी की यात्रा शुरू हुई थी, उनका पड़ोसी जिसका नाम सहाय था, ने उन्हें एक ड्राफ्ट देकर पैसे निकालने के लिए बैंक भेजा। नटवर लाल ने सहाय के जाली हस्ताक्षर एक पेपर पर करके रख लिए और जल्द ही नटवरलाल ने जाली हस्ताक्षर की मदद से सहाय के खाते से पैसे निकालना शुरू कर दिया, जब तक सहाय को पता लगता वह उसके खाते से लगभग हजार रुपये निकालने के बाद वह पटना से कलकत्ता भाग गया।

उन्होंने अपने एक रिश्तेदार की मदद से कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और अपनी B.com और उसके बाद LLB की पढ़ाई पूरी की। उनके परिवार वाले उनको वकील बनाना चाहते थे पर उनके दिमाग में शायद कुछ और ही चल रहा था, उन्होंने फर्जी प्रमाण पत्र बनाए और एक स्कूल के प्रिंसिपल बन गए। उसके बाद उन्होंने स्कूल के अमीर छात्रों के परिवारों से लाखों रुपये ये बोलकर लिये कि उन्हें इसकी आवश्यकता स्कूल के विकास के लिए है। नटवरलाल के निशाने पर मुख्यतः रेलवे स्टेशन, सोना, चांदी व घड़ी के व्यापारी हुआ करते थे। वह अपने काम को समाज सेवा मानते थे क्योंकि वे अमीर व्यापारियों को लूट कर गरीब लोगों की जरूरतों में मदद करते थे। वह अक्सर दावा करता था कि उसने कभी भी किसी  हथियार का इस्तेमाल नहीं किया। नटवरलाल जालसाज़ी के राजा थे, वे पूरे देश में सक्रिय थे, जगह के अनुसार वे अपना नाम, अपनी पोशाक, और जीवन शैली बदलते थे। यह कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में लगभग 50 भेष बनाए थे तथा कई नाम बदले, जैसे मिथिलेश कुमार अग्रवाल, सुरेंद्र कुमार, सीताराम, शंकरलाल, बी.एन.मयूर नटवरलाल के कुछ अन्य नाम थे। दरअसल मिथलेश से नटवर लाल नाम पड़ने के पीछे एक किस्सा है हुआ यूँ था कि एक बार मिथिलेश मुंबई में एक कपडे के व्यापारी से एक अधिकारी बनकर जालसाज़ी करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन वह तब पकड़ा गया जब पुलिस को पता चला कि उसके माल का रेलवे रिलीज सर्टिफिकेट जाली है, उस पकड़ लिया गया लेकिन उसका सहयोगी नटवरलाल भागने में कामयाब रहा और पुलिस को लगा कि मिथिलेश ही नटवरलाल है। इसी से उनका नाम नटवरलाल पड़ा।

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बस इतना ही नहीं। देश के ऐतिहासिक स्थलों को बेचने से पहले उन्होंने प्रसिद्ध हस्तियों के हस्ताक्षर बनाने की कला में भी महारत हासिल की थी। नटवरलाल डॉ. राजेंद्र प्रसाद (तत्कालीन राष्ट्रपति) के जाली हस्ताक्षर करने में बहुत अच्छे थे, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करके उन्होंने तीन बार ताजमहल बेचा, दो बार लाल किला, और एक बार राष्ट्रपति भवन और भारत की संसद को 545 सांसदों के साथ सफलतापूर्वक बेच दिया! उन्होंने एक सुनहार की दुकान से वी.पी. सिंह (जो उस समय भारत के वित्त मंत्री थे) के जाली हस्ताक्षर करके 82,000 के आभूषण की जालसाजी करने में कामयाबी हासिल की, जो विशेष रूप से वी. पी. सिंह के बेटे की शादी के लिए बनाया गया था। इस तरीके से उन्होंने कई नेताओं के नाम पर कई सोने चांदी और घडी के व्यापारियों को ठगा

ताजमहल, लाल किला आदि जैसे कई भारतीय स्मारकों को बेचने के लिए वह उन विदेशियों के सामने एक सरकारी अधिकारी के रूप में जाते थे जो इन स्मारकों का दौरा करते थे वह उनसे कहता कि भारत सरकार इन्हे बेचना चाह रही है अगर कोई उचित खरीददार मिले तो और अधिकतर बार वे विदेशी उनकी ऐसी बातों में आ जाते और इस प्रकार वह सफलतापूर्वक इन स्मारकों को बेच देता। उनके जीवनकाल में उनके खिलाफ टाटा से लेकर बिरला और अंबानी तक कई मामले दर्ज किए गए, वह इन बड़े उद्योगपतियों के पास जाता और खुद को जरुरतमंद या सामाजिक कार्यकर्ता बता कर उनसे लाखों रूपए ले लेता, इस तरह उसने देश के लगभग हर बड़े उद्योगपति को ठगा। वह अपने गाँव के जरूरतमंद लोगों को अपनी लूट देता था।


नटवरलाल के नाम पर भारत भर के 8 राज्यों की पुलिस द्वारा 100 से अधिक मामले दर्ज हैं (कई तो ऐसे हैं जिनके बारे में किसी को कुछ नहीं पता) जिससे उसे 113 साल की जेल हुई थी। इसमें से उन्होंने मुश्किल से 20 साल की कैद की। उसे नौ बार गिरफ्तार किया गया था, और हर बार, वह जेल से भागने में कामयाब हुआ। एक घटना में, उसने किसी फिल्म की तरह एक पुलिस-अधिकारी की वर्दी चुराई और आराम से जेल से बाहर चला गया। 1996 में वह 84 साल के थे जब उन्हें आखिरी बार गिरफ्तार किया गया था। वह इस बार भी वह भागने में सफल रहा। उस दौरान, उसके पैर में कुछ दिक्कत थी जिसकी वजह से उसे कानपुर जेल से AIIMS, नई दिल्ली इलाज के लिए ले जाया जा रहा था, जब वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर चार पुलिस वालों को धोखा देकर नौ दो ग्यारह हो गया, और फिर कभी दिखाई नहीं दिया।
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उनके जीवन की तरह ही, उनकी मृत्यु भी एक रहस्य थी। 2009 में, उनके वकील ने अनुरोध किया कि नटवरलाल के खिलाफ लंबित 100 से अधिक आरोपों को यह दावा करते हुए छोड़ दिया जाए कि नटवरलाल की मृत्यु 25 जुलाई, 2009 को हुई थी। हालांकि, नटवरलाल के भाई, गंगा प्रसाद श्रीवास्तव ने बाद में रांची में पहले उनका अंतिम संस्कार करने का दावा किया। इसलिए मृत्यु का वास्तविक समय और वर्ष अभी तक अनिश्चित है।

नटवरलाल के तरीकों ने कई अन्य कुख्यात दिमागों को आम लोगों को निशाना बनाने और ठगने के लिए प्रेरित किया। जैसा कि हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा बताया गया है, 21 वर्षीय एक व्यक्ति इंद्रप्रस्थ ऑटोमोबाइल्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक के रूप में आकर धोखे से उनके खाते से लगभग 19 लाख रुपये निकाल कर ले गया।


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