दो बहने जिन्हे दी गई फाँसी की सज़ा


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भारत में, मौत की सजा केवल "दुर्लभ से दुर्लभ मामलों" में ही दी जा सकती है, और हत्या के अपराध की दोषी महिला को मौत की सजा सुनाई जाना और भी दुर्लभ है। सबसे ताजा उदाहरण नलिनी का है, जो एक महिला थी जिसे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के संबंध में दोषी ठहराया गया था। उसकी सजा 2000 में सुनाई गई थी।

रतन बाई जैन स्वतंत्र भारत की पहली महिला थी जिन्हे फांसी की सजा दी गयी। तीन बच्चों की हत्या के लिए उसे 1955 में मृत्युदंड दे दिया गया। उस समय कोई नहीं जानता था, कि वह 62 साल तक फांसी की सजा दी जाने वाली अंतिम भारतीय महिला होंगी - 1996 तक।


हालाँकि मैं जिन दो बहनों की बात कर रहा हूँ वे हैं गावित बहनें, जिन्होंने अपनी मां के साथ मिलकर कई बच्चों की क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी। गावित बहनें सीमा गावित और रेणुका शिंदे हैं और उनकी माँ अंजनबाई गावित है। 

यह सब 1990 में शुरू हुआ जब माँ (अंजनबाई गावित) अपनी दोनों बेटियों के साथ अक्सर छोटी-मोटी चोरी करती थीं। एक दिन, बड़ी बहन रेणुका ने एक मंदिर में किसी को लूटने की कोशिश की और लोगों ने उसे पकड़ लिया। वह अपने 1 साल के बच्चे, संतोष के साथ थी। भीड़ ने उससे पूछताछ की तो उसने अपने बच्चे की कसम खाकर लोगों से अपील की, कि लोग उन्हें जाने दें, और कहा कि कोई महिला जिसके साथ कोई छोटा बच्चा है वह कैसे कोई अपराध कर सकती है, और लोगों ने उसे जाने दिया। यह मोड़ था जब इन महिलाओं को एहसास हुआ कि अगर उनके साथ बच्चे हैं, तो चोरी करना आसान है।

इन महिलाओं ने 1990 से पूरे महाराष्ट्र में बच्चों (1 और 5 साल की उम्र के बीच) का अपहरण करना शुरू कर दिया, उन्हें चोरी के लिए इस्तेमाल किया और फिर क्रूरता से उन सभी को मार डाला। 1990 से 1996 तक उन्होंने लगभग 43 बच्चों का अपहरण किया। अपहरण व मौतें 1990 और 1996 के बीच महाराष्ट्र के पुणे, कोल्हापुर और नासिक जिलों में हुई थीं। राज्य पुलिस ने अदालत में 43 में से केवल 13 बच्चों की हत्या ही साबित कर पाई। ऐसा नहीं है कि वे मानसिक रूप से अस्थिर थे, क्योंकि उन्होंने सभी हत्याओं को बहुत ही रणनीतिक रूप से किया था।

एक दिन, सीमा को लोगों ने चोरी करते हुए पकड़ा तब रेणुका  संतोष नाम के एक बच्चे के साथ खड़ी थी। जब लोग सीमा की पिटाई करने लगे, तो रेणुका ने भीड़ को विचलित करने के लिए अचानक उस बच्चे को फर्श पर फेंक दिया। संतोष को काफी खून बहने लगा लेकिन गावित बहनों ने इस मौके का इस्तेमाल किया और वहां से भाग गईं। अंजनाबाई को पता था कि संतोष का कोई फायदा नहीं है और वह इन्हे फसा सकता है , इसलिए उसने लोहे के खंभे से सिर मारकर संतोष की हत्या कर दी ताकि वह किसी को कुछ बता न सके.


1996 में पुलिस ने 25 वर्षीय सीमा गावित, रेबुका शिंदे, उनके पति किरण शिंदे और लड़कियों की मां अंजना बाई गावित को गिरफ्तार किया था। हुआ यूँ कि 1996 में, अंजनबाई ने अपने पूर्व पति की बेटी की हत्या करने की योजना बनाई। लेकिन दुर्भाग्य से, पुलिस ने उन तीनों को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के समय, रेणुका 29 वर्ष की थीं और सीमा 25 वर्ष की थीं। जांच की प्रक्रिया के दौरान, उनके घर में बच्चों के बहुत सारे कपड़े और खिलौने पाए गए, जिससे पुलिस वालों को कुछ शक हुआ और जाँच करने पर सारा मामला सामने आया।

दोनों बहनों में से कोई भी कुछ भी कबूल करने के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन आखिरकार पुलिस पूछताछ के दौरान, सीमा ने अपने सभी अपराधों को कबूल कर लिया। इसने हमारे देश में, विशेषकर महाराष्ट्र में एक बड़ी हलचल पैदा की। पुलिस ने 13 बच्चों की हत्या का मामला दर्ज किया और किरण शिंदे (सीमा के पति) को सरकारी गवाह बनाया।

कोल्हापुर कोर्ट ने 2001 में उन दोनों को फांसी देने का फैसला दिया, जिसे 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया था। यहां तक ​​कि राष्ट्रपति ने 2014 में उनकी दया याचिका से इनकार कर दिया। इसके बावजूद भी उन्हें आज तक, फांसी नहीं दी गई है और मुझे इस का कोई उचित कारण का पता नहीं है कि ऐसा क्यों नहीं किया गया।

इस पूरे मामले में अंजनाबाई सबसे बड़ी अपराधी थी, उसे रेलवे स्टेशन पर अपने आसपास के लोगों की जेब काटने और लोगों की गर्दन से सोने की चेन छीनने समेत 125 चोरी की वारदातों के लिए पहले भी गिरफ्तार किया गया था. गावित बहनों को उनकी मां अंजना द्वारा अपराध के जीवन में शामिल किया गया था, जिन्होंने उन्हें पूरे महाराष्ट्र के छोटे शहरों में भीड़-भाड़ वाले बाजार स्थानों और धार्मिक त्योहारों के दौरान जेब काटना सिखाया था। 1997 में उनकी गिरफ्तारी के एक साल बाद अंजनबाई की जेल में मौत हो गई।

यह बहुत सारे लोगों के अनुसार भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा अपराध था।


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